चट्टानों से अटल इरादे लिए
मन में कुछ पाने की चाह लिए
हम सजे-संवरे निकल पड़े
राहों में कितने मोड़ पड़े
हर मोड़ पे एक तजुर्बा नया
जीवन का देखा रूप नया
जीना उतना नहीं है सरल
पग-पग पीते यहाँ लोग गरल
कोई भी राह आसान नहीं
विषधरों की नहीं पहचान कहीं
फिर भी बढ़ना स्वभाव मेरा
मंज़िल पाना था ख्व़ाब मेरा
आशा की एक किरण लेकर
मुश्किलों को चली मार ठोकर
चुनौतियाँ पग-पग मिली खड़ी
हिम्मत रख हर डर से लड़ी
कंटक चुभे पर होंठ सिले
खुशियों के सुनहरे फूल खिले
मनोबल कभी न टूटने दिया
आँधियों में जला आस का दिया
मजबूत इरादे से पूरा सपना
जग ने जाना नाम अपना
आशाओं का बरसा सावन
सब लगा बड़ा ही मनभावन
लक्ष्य नहीं है मुश्किल पाना
यह बात आज हमने जाना।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद शिवम् जी
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
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