झाँसी की रानी अलबेली
खूब लड़ी मर्दानी नार।
काल बनी वो रण में कूदी
अंग्रेजों का कर संहार।।
बुंदेलों की है ये बेटी
नाम सुने दुश्मन घबराय।
नेह वतन के दीप जलाती
हाथ किसी के वो कब आय।।
अश्व सवारी करके लड़ती
दोनों हाथ लिए तलवार।
झाँसी की रानी अलबेली
खूब लड़ी मर्दानी नार।।
क्रोध भरी हुंकार भरे जब
पीठ बँधा था नन्हा लाल।
दुर्गा काली रण चण्डी बन
दुष्टों का वो बनती काल।।
अंग्रेजों को मार भगाती
दूर करें धरती का भार।
झाँसी की रानी अलबेली
खूब लड़ी मर्दानी नार।।
उतरी रण में कोमल नारी
वेग पवन सा अश्व चलाय।
बिजली बनकर टूट पड़ी जब
देख डरे दुश्मन घबराय।।
सुंदर नेत्र सुकोमल काया
निकली काली का अवतार।
झाँसी की रानी अलबेली
खूब लड़ी मर्दानी नार।।
(आल्हा छंद)
*©®अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार
बहुत सुन्दर वीरछन्द।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। बहुत खूब।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबहुत ही सुंदर वीर रस से ओतप्रोत कविता..
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीया
Deleteबहुत सुंदर l
ReplyDeleteआपको और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं l
धन्यवाद आदरणीय आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं।
Deleteआल्हा छंद के सुंदर उपयोग से एक अत्यन्त ओजपूर्ण एवं प्रेरक गीत लिखा है अनुराधा जी आपने । अभिनंदन ।
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