कालिंजर की राजकुमारी
दुर्गा नाम बड़ा विख्यात।
राजा दलपत की बन रानी
खुशियों से करती थी बात॥
संकट जब शासन पे आया
रानी रण में कूदी आय।
आशफ खान डरा तब थर थर
काली का ली रूप बनाय।
देख हुए हतप्रभ जन सारे
विद्युत गति से करती घात॥
कालिंजर की राजकुमारी...
देख अकेली अबला नारी
खेल रहा था अकबर दाँव।
चाल पड़ी दुश्मन पे भारी
शीश गिरा करती थी घाव।
मुख मंडल पे तेज लिए वो
देती थी मुगलों को मात॥
कालिंजर की राजकुमारी...
अद्भुत रणकौशल जब देखा
अकबर अचरज में पड़ जाय।
कैसी अद्भुत नार नवेली
दो दो हाथों खड्ग चलाय।
भूल हुई मुगलों से भारी
समझी कोमल नारी जात॥
कालिंजर की राजकुमारी...
दुर्गा रूप लिए रण उतरी
मुगलों का करती संहार।
नाम अमर सदियों से गूँजे
होती जग में जय-जयकार।
शीश झुकाते भारतवासी
जग में होती इनकी बात॥
कालिंजर की राजकुमारी....
©®अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार
बहुत सुंदर । बहुत प्रेरक । बहुत ओजस्वी । अति-प्रशंसनीय काव्य-सृजन ।
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