Sunday, June 20, 2021

मदिरा सवैया

 

मापनी
211 211 211 2, 11 211 211 211 2

*1*
*नंदकिशोर*
केशव नंदकिशोर कहीं,धुन छेड़ रहे मुरली वन में।
झूम चले घर छोड़ सभी,सब नाच रहे फिर कानन में।
व्याकुल होकर ढूँढ रही,वृषभानु लली सुध खो मन में।
बेसुध होकर देख रहे,तब प्राण नहीं दिखते तन में।

*2*
छोड़ विकार सभी मन के,तब अंतस प्रेम नदी बहती।
संग बहे मन मैल सभी,रस जीवन ज्ञान लिए रहती।
जो विष अंकुर फूट गए,सुख जीवन के क्षण ले ढहती।
आस सदा सच से रखना,यह सीख सिखा सबसे कहती।

*3*
सावन साँझ सुहावन सी,सब साथ सखी सुख साधन सी।
देख घटा घनघोर घिरी,फिर तेज बड़ी बरसे मन सी।
भीग रहे घन श्याम खड़े,ऋतु आज बड़ी मनभावन सी।
साथ सभी सखियों मिलके,महकी फिर प्रीत सुहावन सी।

*4*
रूप मनोहर श्यामल सा,मुखड़ा मनभावन मोहन का।
गोप निहार रही मुख को,सुख आन खड़ा फिर से मन का।
श्याम बसे सबके मन में,सुध भूल फिरे कबसे तन का।
सुंदर रूप अनूप छटा,जब रूप सजे ऋतु यौवन का।

*5*
*सबला*
बाँट रही खुशियाँ सबको,विष पीकर जीवन में कबसे।
कोमलता बन मूरत वो,बस पीर छुपा रहती सबसे।
देख रही बदली जगती,फिर रूप धरा सबला जबसे।
हाथ लिखी खुशियाँ पकड़े,पथ आस लिए चलती तबसे

*अनुराधा चौहान'सुधी'*
चित्र गूगल से साभार

2 comments:

  1. बहुत सुंदर सवैये अनुराधा जी 🙏

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    1. हार्दिक आभार शरद जी।

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