*१--संताप*
घनी काल छाया भवानी पड़ी है,
अँधेरा घना आज कैसे मिटे।
धरा डोल के क्रोध ऐसा दिखाती,
जरा देर में प्राण ऐसे मिटे।
सभी को चपेटे यहाँ रोग फैला,
कई भूख से आज वैसे मिटे।
बढ़े आज संताप जैसे लताएं,
सभी आज हैं बूँद जैसे मिटे।
*२--माँ भवानी*
सुनाती कहानी सभी को तुम्हारी,
सुनो माँ भवानी पधारो यहाँ।
खुलें मंदिरों के सभी आज ताले,
खुशी बोलती लोग देखें जहाँ।
मिले गोद तेरी हरो मात पीड़ा,
निराली कृपा आज देखी कहाँ।
नमामी भवानी सुनो माँ हमारी,
जहाँ पाँव तेरे उजाले वहाँ।
शिल्प विधान
7 यगण + लघु+ गुरु
मापनी
122 122 122 122, 122 122 122 12
३--धीर
धरें धीर धीरे चलोगे कहीं जो,
नहीं चाल कोई तुम्हें मार ले।
चले ठान के काज पूरा करोगे,
बनेंगे सभी जो सही सार ले।
नहीं छोड़ देना कभी काम ऐसे,
पड़ी राह बाधा चले हार ले।
बढ़े नाम जैसे चढ़े बेल सारी,
खिलेंगी कली भी खुशी भार ले।
४-बुराई
करो काम ऊँचे सभी नाम पूछे,
बुराई मिटा खोल दो द्वार को।
हराए न कोई कहीं बीच बाधा,
नहीं रोकना प्रेम की धार को।
मरी जो उमंगे उन्हें ही जगाओ,
वही जीतते जो सहे हार को।
उमंगे तरंगें सदा ही बढ़ाओ,
चलो मारते बैर की मार को।
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार
🙏🙏🙏🙏 बहुत सुंदर प्रार्थना ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया।
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