Wednesday, July 7, 2021

रासलीला


1
सुनी मुरली जग झूम उठा,
यदुनंदन छेड़ रहे फिर साज।
किलोल करें खगवृंद सभी,
प्रभु रास करें मन गोप विराज।
उजास खिली तम दूर हटा,
नभमंडल देख रहा यह राज।
निहार रही मुख मंडल को,
फिर ढाँक रहीं मुख घूँघट लाज।
2
निनाद करे धरती नभ भी,
पग में घुँघरू करते जब शोर।
मनोहर सुंदर देख छटा,
वन नाच रहे रजनी सब मोर।
निशा यह पूनम भावन सी,
मुख देख रहा तब चाँद चकोर।
निशांत ढली जब सुंदर सी,
तब सूरज ले निकली फिर भोर।
*विधा- मुक्तहरा सवैया*

मुक्तहरा सवैया में 8 जगण होते हैं। मत्तगयन्द आदि - अन्त में एक-एक लघुवर्ण जोड़ने से यह छन्द बनता है; 11, 13 वर्णों पर यती होती है। देव, दास तथा सत्यनारायण ने इसका प्रयोग किया है।
121 121 121 12, 1 121 121 121 121

*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार

6 comments:

  1. कान्हा की मुरली का जादू आपकी सुंदर रचना पर छाया हुआ है !

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया

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  2. भगवान कृष्ण की रासलीला की सुंदर मनोरम अभिव्यक्ति,बहुत शुभकामनाएँ अनुराधा जी।

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    1. हार्दिक आभार जिज्ञासा जी

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  3. बहुत सुंदर सार्थक सवैये सखी मोहक।

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