*१-विचार*
चाह सदा मन में सुख की रख,काम करो सब सोच विचार।
मान मिले सम्मान मिले तब,शीश चढ़े मिटते दुख भार।
आँच जहाँ मन झूठ लगी फिर,राख बने सपने मन मार।
पाँव बढ़ा सच के चलना पथ,लालच में गिरता मनु हार।
*२-सुख की चाह
प्रीत बढ़े मन भेद मिटे फिर,हो जग में फिर सुंदर राज।
वैभव की मन प्यास जगे फिर,काम शुरू करना कुछ आज।
धूप खिले मनभावन सी तब,जीवन में करते शुभ काज।
चाह सभी फिर पूरण हो मन,गूँज उठें फिर से सुख साज।
*परित्यक्त सीता की व्यथा*
*१*
नीर भरे नयना छलके जब,देख धरा उपजे मन क्रोध।
पीर छुपा रघुनाथ कहें तब,मौन बनी सहती अवरोध।
राघव देख रहे चुप होकर,क्यों सहती फिर घोर विरोध।
देख सिया वनवास चली फिर,अंतस कौंध रहे सब शोध।
*२*
राज लली वन घूम रही जब,भीग रही पलकें तब कोर।
कोमल रूप निहार रहे मुनि,क्यों तनया फिरती वन भोर।
तात छुपी तुमसे कब दारुण,आज व्यथा बनती सिरमोर।
गूँज रहा जनमानस का मन,घोर मचा अब अंतस शोर।
*चकोर सवैया*
भगण × 7 + गुरु + लघु
12,11 पर यति
211 211 211 211, 211 211 211 21
©® अनुराधा चौहान'सुधी'
चित्र गूगल से साभार
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (12-07-2021 ) को 'मानसून जो अब तक दिल्ली नहीं पहुँचा है' (चर्चा अंक 4123) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
जी हार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteजीवन की शिक्षा देते सवैया...
ReplyDeleteहार्दिक आभार विकास जी।
Deleteछन्दों में सजा नीतिसौन्दर्य।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteधूप खिले मनभावन सी तब,जीवन में करते शुभ काज।
ReplyDeleteचाह सभी फिर पूरण हो मन,गूँज उठें फिर से सुख साज।---गहन रचना
हार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteबहुत सुंदर प्रेरक सवैया,बहुत शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार जिज्ञासा जी।
Deleteवाह !
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी।
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