Monday, July 5, 2021

सुख सवैया


  *१--सावन*

ऋतु सावन की मनभावन सी,
बदली बरसे घनघोर घिरी घटा।
मन मोर कहीं पर नाच करे,
सब देख रहे दुख को जड़ से कटा।
चपला तड़के गरजे बरसे,
टिप टापुर सुंदर सी निखरी छटा।
मन भार हटे सुख भोर खिले,
खिलती जगती दुख के तम को हटा।

*२--पुरवा*
उगता नभ सूरज ले किरणें,
रथ बैठ उजास जगाकर ला रहा।
चिड़ियाँ चहकी उड़ती दिखती,
हर फूल सुगंधित डाल खिला रहा।
पुरवा बहकी सरसों महकी,
लगता तब चूनर खेत हिला रहा।
जग सुंदर रूप अनूप छटा,
फिर साँझ ढले दिन रात मिला रहा।


 *३--उत्थान*
दिन बीत रहा फिर रैन ढले,
करले अब जीवन में कुछ ठान के।
पल छूट गए यह हाथ सभी ,
फिर घूँट पियो सबसे अपमान के।
मिलती खुशियाँ सबको तब ही,
हर काम करें त्रुटियाँ पहचान के। 
फिर रोक नहीं सकती विपदा,
तब मार्ग खुले सबके उत्थान के

*४--अवलोकन*
महके जग में फिर नाम सदा,
सब काम करो अवलोकन से जरा।
सुख की कलियाँ फलती फिर यूँ,
तरु देख रहा वन को फिर से हरा।
चलना सच की फिर राह सदा,
यह सीख सिखा कहना सच ही खरा।
भटके पथ से जब मानव तो,
छलके फिर पाप घड़ा मद से भरा।

सुख सवैया नवीन सवैया 8 सगण+लघु गुरु से बनता है; 12, 14 वर्णों पर यति होती है। सुखी सवैया 8स+2ल के अन्तिम वर्ण को दीर्घ करने से यह छन्द बनता है।
मापनी ~~ 
112 112 112 112, 112 112 112 112 12

*अनुराधा चौहान'सुधी'*
चित्र गूगल से साभार

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