हाहाकार मचा धरती पर,
जीवन संकट में भारी।
काल मचाए तांडव जग में,
क्यों चुप बैठे बनवारी।
रोग नाग बन डसता जीवन,
कष्ट बहुत सबने भोगा।
लीलाधर तेरी लीला से ,
कोरोना मर्दन होगा।
मानव की करनी से आहत,
विष ले बहती पुरवाई।
वन उपवन उजड़े हैं सारे,
कोमल कली कुम्हलाई।
मात-पिता की मुस्कान छिनी,
रोती बहन लिए राखी।
बोझ बने दिन गुजर रहे हैं,
आस उड़े बनकर पाखी।
टूट गए अभिमान कई फिर,
लगे दौड़ पर जब ताले।
पैसों की कीमत तब जानी,
खाली देखे जब आले।
प्रभु एक इशारा कर दो अब,
हो फिर से नया सबेरा
सुख जीवन में चहक उठे फिर
हे नाथ आसरा तेरा।
अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार
हे प्रभु जीवन में उठती हर उथल पुथल को हमसे बहुत दूर कर दो👏👏सुंदर प्रार्थना ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार जिज्ञासा जी।
Deleteमात-पिता की मुस्कान छिनी,
ReplyDeleteरोती बहन लिए राखी।
बोझ बने दिन गुजर रहे हैं,
आस उड़े बनकर पाखी।
याथर्थ को बयां...
हार्दिक आभार मनीषा जी।
Deleteअच्छी कविता।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
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