Thursday, April 28, 2022

उन्नति के शिखर


  
उन्नति के चढ़कर शिखर,प्रीत न जाना भूल।
प्रीत बिना चढ़ती सदा,रिश्तों पर फिर धूल।
रिश्तों पर फिर धूल,चिढ़ाए पल पल मन को।
अपनों के ही संग,मिले हर सुख जीवन को।
देख स्वार्थ के पथ,मिले पग पग पर अवनति।
सच का आँचल थाम, शिखर चढते सब उन्नति।
अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार

4 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(३०-०४ -२०२२ ) को
    'मैंने जो बून्द बोई है आशा की' (चर्चा अंक-४४१६)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. सार्थक संदेश देती सुंदर कुंडलिया छंद ।

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    Replies
    1. हार्दिक आभार जिज्ञासा जी।

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