उन्नति के चढ़कर शिखर,प्रीत न जाना भूल।
प्रीत बिना चढ़ती सदा,रिश्तों पर फिर धूल।
रिश्तों पर फिर धूल,चिढ़ाए पल पल मन को।
अपनों के ही संग,मिले हर सुख जीवन को।
देख स्वार्थ के पथ,मिले पग पग पर अवनति।
सच का आँचल थाम, शिखर चढते सब उन्नति।
अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(३०-०४ -२०२२ ) को
'मैंने जो बून्द बोई है आशा की' (चर्चा अंक-४४१६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हार्दिक आभार सखी
Deleteसार्थक संदेश देती सुंदर कुंडलिया छंद ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार जिज्ञासा जी।
Delete