एकादशी दिवस बड़ा पावन।
विवाह तुलसी का है आँगन।।
ब्याहन आए हैं शालिग्रामा।
सुंदर छवि वर अति सुहाना।।
श्रीहरि की हैं तुलसी संगी।
वृंदा है श्री हरि वामांगी।।
पवित्र पावन न कोई ऐसा।
पवित्र पावन न कोई ऐसा।
सती जग में न तुलसी जैसा।।
शीश मंजरी इसके बिराजे।
अँगना मध्य माँ तुलसी साजे।।
तुलसी पूजन करते भक्ति से।
मिलता है मोक्ष भजन युक्ति से।।
तुलसी के बिन भोग अधूरा।
औषधी गुण भरे यह पूरा।।
घर में सुख-समृद्धि है आती।
हरी-भरी तुलसी जब बसती।।
घर में सुख-समृद्धि है आती।
हरी-भरी तुलसी जब बसती।।
तुलसी पत्र का भोग लगावे।
पूजा पूरण तब हो जावे।।
नारायण की कृपा बसती।
जिस घर में माँ तुलसी पुजती।।
***अनुराधा चौहान***
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