Sunday, November 10, 2019

देवउठनी एकादशी

एकादशी दिवस बड़ा पावन।
विवाह तुलसी का है आँगन।।
ब्याहन आए हैं शालिग्रामा।
सुंदर छवि वर अति सुहाना।।

श्रीहरि की हैं तुलसी संगी।
वृंदा है श्री हरि वामांगी।।
पवित्र पावन न कोई ऐसा।
सती जग में न तुलसी जैसा।।

शीश मंजरी इसके बिराजे।
अँगना मध्य माँ तुलसी साजे।‌।
तुलसी पूजन करते भक्ति से।
मिलता है मोक्ष भजन युक्ति से।।

तुलसी के बिन भोग अधूरा।
औषधी गुण भरे यह पूरा।।
घर में सुख-समृद्धि है आती।
हरी-भरी तुलसी जब बसती।।

तुलसी पत्र का भोग लगावे।
पूजा पूरण तब हो जावे।।
नारायण की कृपा बसती।
जिस घर में माँ तुलसी पुजती।।
***अनुराधा चौहान***

No comments:

Post a Comment

श्रेष्ठ प्राकृतिक बिम्ब यह (दोहे)

1-अग्नि अग्नि जलाए पेट की,करे मनुज तब कर्म। अंत भस्म हो अग्नि में,मिट जाता तन चर्म॥ 2-जल बिन जल के जीवन नहीं,नर तड़पे यूँ मीन। जल उपयोगी मान...