दिन ढले बीते रैना
तुम बिन एक पल आए न चैना
बीती रात खिल उठे
कमलदल
भँवरों के स्वर से गूँजे
कमलदल
भँवरों के स्वर से गूँजे
महकते उपवन
ओस धरा के अंग समाई
आस मिलन की फिर जाग आई
नीर नैनों से छलक उठे
सपने विरहाग्नि में जल उठे
बेपरवाह थी तेरी चाह में
चल दी काँटों भरी राह में
सुनहरे स्वप्न सब खाक हुए
जिद्द में अपनी बर्बाद हुए
अब न आगे और न पीछे
मझधार में कुछ न सूझे
तब दिल से एक आवाज है आई
क्यों रोकर जाए उमर गंवाई
तब दिल से एक आवाज है आई
क्यों रोकर जाए उमर गंवाई
आँख खोल नई भोर खड़ी
ले जीवन से सुनहरे पल की लड़ी
गम की रात बीतेगी सुबह आएगी
बहती हुई पवन पुरवा सुनाएगी
***अनुराधा चौहान***
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