Saturday, November 16, 2019

पानी


मूलमंत्र है सृष्टि का, पानी जग आधार।  
प्रकृति के असंतुलन से,मिटती जल की धार।।

विकास के इस दौर में,डसे प्रदूषण नाग।
गाँव-घर में दौड़ रही, बीमारी की आग।।

रोको वन अब काटना,प्रकृति रही है बोल।
जो रोके से ना रुके,धरा रही है डोल।।

***अनुराधा चौहान***

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