Thursday, November 14, 2019

रेत के घरौंदे

पल-पल बिखरती
रेत के घरौंदे-सी
यह ज़िंदगी फिसलती
कभी टूटकर बिखरे
कभी खुलकर जिए
किस्मत में कहाँ सबके
जो आसमान को छुए
स्वप्न भरी आँखों में
आशा के किरण जगाए
मंज़िल की तलाश में
हौंसलें की उड़ान भरते
हर-पल घटती ज़िंदगी को
खुशियों से सींचने का
अथक प्रयास करते
टूट जाए स्वप्न तो
उम्मीदों की लाश पर
फिर से स्वप्न जगाते
पूरे हों या न हो स्वप्न
सफर पर आगे बढ़ जाते
इंसान के मन में अगर
होते हैं हौंसले बुलंद
तो मुश्किल से टकरा जाते
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

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