Monday, November 18, 2019

भूल न जाना


मीत बना कर भूल न जाना,
     ऐ साजन परदेशी।
अब के सावन बरस रही है ,
जाने बारिश कैसी।

बीत रहा बहार का मौसम,
   बीत रही ऋतु सावन।
 कजरी गीतों की धूम मची
    सूना मेरा आँगन।
 तुम बिन सूना लागे पनघट,
      सूनी गाँव की गली।
मीत बना कर भूल न जाना,
     ऐ साजन परदेशी।

   हँसना गाना भूले अब तो,
    भूले हर एक रीत।
अँधियारे की फैली चादर,
     बुझ गए सारे दीप।
अगन भरी है शीतल बयार,
     बीते रैना ऐसी।
मीत बना कर भूल न जाना,
     ऐ साजन परदेशी।

 भींगी पलकें लेकर बैठे ,
     नैना राह निहारे।
सखियाँ हँसके देंगी ताने,
   सोच-सोच हम हारे।
तड़पूँ जल बिन मछली जैसी,
    यह नाराजी कैसी।
मीत बना कर भूल न जाना,
     ऐ साजन परदेशी।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

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