गजबपुर के चौराहे पर,
भीड़ इंसानों की खड़ी।
किसी के हाथ में झाड़ू,
तो किसी के हाथ छड़ी।
लगे हुए थे सब चमकाने,
शहर का हर एक कोना।
वृद्ध छड़ी ले टहल रहे थे,
वृद्धा के हाथों में गहना।
चारों ओर खुशहाली थी,
सब लगे हुए कारोबार में।
चोरों का कोई भय नहीं,
रहते वहाँ सब प्यार से।
खुशियों के हर ओर फूल खिले,
और दिन लगते हैं त्यौहार से।
गरीबी का नामोनिशान नहीं था,
इंसान के भीतर जिंदा इंसान था।
निर्भय होकर घूम रही थी,
बेटियाँ गलियों चौबारे में।
सास,बहू लगे माँ-बेटी-सी,
भाईयों में प्रीत के रंग मिले।
नेता मिले परोपकारी बड़े,
हृदय उनका बहुत बड़ा।
मदद को हरदम रहते खड़े,
न कोई झंझट ना ही लफड़ा।
सपनों-सा यह शहर अलबेला,
काश ऐसा सारा संसार हो।
खुशियों का लगता रहे मेला,
प्रीत की सदा बरसात हो।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
बहुत सुन्दर 👏👏👏काश कि सच में ऐसा हो👌👌👌
ReplyDeleteहार्दिक आभार
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