Sunday, November 10, 2019

दीप जले घर-घर

दीप जले थे घर-घर
फिर भी सूनी दीवाली है
कहीं पकवान की सुगंध थी
तो अब सूनी थाली है
हाथों में खनकती थी चूड़ियाँ 
घर में खुशियाँ गूँजती थी
वीरों की कुर्बानियों से
रंक्तरंजित धरा है बिलखती
कभी जलते हुए दिए थे
खुशियों भरी किलकारी थी
अब घनघोर अंधेरा छाया
और आँखों में पानी है
श्रद्धासुमन करूँ में अर्पित
वीरों की चिताओं पर
जिनके ही दम पर हरदम
हम सबकी रौशन दीवाली है
इक यह भी दीवाली है
इक वो भी दीवाली थी
तब खुशियों भरी रौनक थी
अब आँखों में पानी है
***अनुराधा चौहान***
शहीदों के परिवार को समर्पित

No comments:

Post a Comment

श्रेष्ठ प्राकृतिक बिम्ब यह (दोहे)

1-अग्नि अग्नि जलाए पेट की,करे मनुज तब कर्म। अंत भस्म हो अग्नि में,मिट जाता तन चर्म॥ 2-जल बिन जल के जीवन नहीं,नर तड़पे यूँ मीन। जल उपयोगी मान...