दीप जले थे घर-घर
फिर भी सूनी दीवाली है
कहीं पकवान की सुगंध थी
तो अब सूनी थाली है
हाथों में खनकती थी चूड़ियाँ
घर में खुशियाँ गूँजती थी
वीरों की कुर्बानियों से
रंक्तरंजित धरा है बिलखती
कभी जलते हुए दिए थे
खुशियों भरी किलकारी थी
अब घनघोर अंधेरा छाया
और आँखों में पानी है
श्रद्धासुमन करूँ में अर्पित
वीरों की चिताओं पर
जिनके ही दम पर हरदम
हम सबकी रौशन दीवाली है
इक यह भी दीवाली है
इक वो भी दीवाली थी
तब खुशियों भरी रौनक थी
अब आँखों में पानी है
***अनुराधा चौहान***
शहीदों के परिवार को समर्पित
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