Wednesday, January 15, 2020

कला

1
कला कभी छुपती नहीं,बस चाहे आधार।
मन भीतर आशा जगी,मिल जाता विस्तार।
2
चाहे कितना भी दबा,फिर भी जागे आस।
मन के कोने में दबी,कलाकार की प्यास।
3
ऊपर वाले की कला,धरती अंबर गोल।
सागर की लहरें कहें,नदिया जल अनमोल
4
कोयल मीठा बोलती,कागा काल समान।
कलम कोश की कामना,कलमकार का मान।
***अनुराधा चौहान***

2 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (17-01-2020) को " सूर्य भी शीत उगलता है"(चर्चा अंक - 3583)  पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है 
    ….
    अनीता 'अनु '

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  2. जी आभार अनीता जी

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