दिशाएँ कह रही हमसे, हवाओं में न विष घोलो।
उजाड़े यह चमन हमने,दिलों के द्वार तुम खोलो।।
सुलगती नफरतें दिल में,यही कड़वी हकीकत है।
लड़ाई मजहबी लड़ते,करी अपनी फजीहत है।।
नशा झूठ सिर का चढ़ता,करें सबको परेशानी।
अहं सिर पर चढ़ा बैठा,करें बिन बात मनमानी।।
दिल के अंदर कड़वाहट,भुलाकर प्यार की बातें।
उड़ा प्रेम धुआँ बन कहाँ,जले दिन भी जलें रातें।।
चुनी ग़लत सबने राहें,सभी कर्म पथ भी छोड़े।
अपनापन सबने भूला,दिल से बंधन भी तोड़े।।
***अनुराधा चौहान***✍️
विधाता छंद विधान*
१२२२,१२२२,१२२२,१२२२ = २८ मात्रा
१,७,१५,२२वीं मात्रा लघु अनिवार्य
चित्र गूगल से साभार
अरे वाह!!!आपने विधाता छंद पर भी सृजन कर लिया।शानदार रचना 👌👌👌👌👌
ReplyDeleteहार्दिक आभार जी
Deleteवाह!! बहुत ही सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
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