1
कैसा यह संसार,बेटी लगती बोझ सी।
हलका करते भार, टुकड़े करके कोख में।।
2
रचा महावर लाल,बेंदा चमके माथ पे।
आज चली ससुराल,घर बाबुल का छोड़ के।।
3
बेटी माँगे प्रीत,सिमटी आँचल मात के ।
कैसी जग की रीत,मारी निर्बल बालिका।।
4
वचन बड़े अनमोल,मीठी वाणी बोलिए।
विष जीवन मत घोल,मर जाते नाते सभी।।
5
कैसा कलयुग राज,भूली कोयल कूक भी।
गोलमाल सब काज,धूमिल होती धूप भी।।
6
आज धरा की पीर,तपती धरती से बढ़ी।
घन बरसाओ नीर,मेघों की छाया करो।।
7
जल की कीमत जान,कहती है पल-पल धरा।
बूँद सोम सम मान,जीवन जीने के लिए।।
8
संयम से ले काम,उलटी धारा समय की।
जपो राम का नाम,मन के सारे डर मिटे।।
9
मचता हाहाहार,कोरोना के रोग से।
पड़ी समय की मार,मानव डरता देख के।।
10
नहीं देखती काम,जनता चुनती नाम को।
भुगते तगड़ा दाम,अर्थी वचनों की उठी।।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
बहुत बढ़िया सोरठा
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ
धन्यवाद आदरणीय
Deleteअच्छे सोरठे।
ReplyDeleteबात तो एक ही है, दोहा या लिखो या सोरठा।
जी आभार आदरणीय
Delete