अत्रि मुनि श्री राम को अपने आश्रम में देखकर खुशी से उनकी स्तुति करने लगते हैं।
चित्रकूट से चलते रघुवर,
लिए विचार मिलेंगे मुनिवर,
सुन संदेशा राम पधारे,
दौड़ें उठकर मुनिवर द्वारे।
अत्रि मुनि को आते देखा,
मुख तैरती खुशी की रेखा,
आगे बढ़कर शीश नवाया,
वनवास का वृत्तांत सुनाया।
हर्षित मुनि फिर गले लगाए,
सम्मुख प्रभु श्री राम बिठाए,
जग में पुत्र न तुमसा रघुराई,
भरत लक्ष्मण सा नहीं भाई।
धन्य नाथ में दर्शन पाकर,
सुख दीन्हा मुझे यहाँ आकर,
तीन लोक के प्रभु तुम स्वामी,
मैं तो मानव हूँ अभिमानी।
है नाथ तुम दया के सागर,
मेरी रिक्त ज्ञान की गागर,
करूँ नमन में बारम्बारा,
महिमा तुम्हारी अपरम्पारा।
हे दशरथ के राजदुलारे,
तुमसे चमके अम्बर तारे,
मुनि करते हैं स्तुति राम की,
महिमा बड़ी है श्री राम की।
©®अनुराधा चौहान'सुधी'
चित्र गूगल से साभार
बहुत सुन्दर .....
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteवाह , बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
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