राम सिया से कहते देवी
बात पते की सुनलो आज।
लीला करने का यह अवसर
इसको रखना होगा राज।
सुन वचनों को माता पूछे
बोलो स्वामी क्या है काम।
जो बोलोगे काज करूँगी
आदेश मुझे दो प्रभु राम।
दानव दल उत्पात मचाते
रचते निशदिन नूतन वेश।
मायावी ये रूप बदल के
दूषित करते आज प्रदेश
अत्याचार मचाते फिरते
करनी से कब आए बाज।
जो उत्पाद किया दानव ने
दंड मिले उसको लग ब्याज।
दो आज्ञा मुझको क्या करना
होगी हर विधि अब स्वीकार ।
बढ़ता जाए अब तो निशदिन
धरती का मायावी भार।
सुन देवी तुमको अब जाना
छाया छोड़ हमारे पास।
छाया लेकर साथ चलूँगा
बस इतनी छोटी सी आस।
देवी तुम प्राणों से प्यारी
पूरी हो वचनों की लाज।
जीवन का संगीत तुम्ही से
तुमसे सजता है हर साज।
*अनुराधा चौहान'सुधी'*
चित्र गूगल से साभार
आह ! बहुत हृदय स्पर्शी प्रसंग को कितने आत्मीय शब्दों में पिरो दिया आपने।
ReplyDeleteहार्दिक आभार जिज्ञासा जी
Deleteअत्याचार मचाते फिरते
ReplyDeleteकरनी से कब आए बाज।
जो उत्पाद किया दानव ने
दंड मिले उसको लग ब्याज।
वाह
बहुत सुंदर । अपने अहसासों को बड़े सूंदर ढंग से आपने अपने शब्दों को पिरोया है ।
हार्दिक आभार आदरणीय
Delete