१
*राम सिया का प्रथम मिलन*
सुशोभित सुंदर रूप अनूप,निहार रही मुख रंगत ऐसे।
कुमार सुकोमल राम समीप,सरोज समान विलोचन वैसे।
उमंग हिलोर सिया अतिरेक,पतंग उड़े मन व्याकुल कैसे।
प्रसंग सिया अरु राम मिलाप,नदी मिले अब सागर जैसे।
२
*सीता की मनोदशा*
मनोरथ नेक विचार महान,करे कर जोड़ प्रणाम कुमारी।
खड़ी रघुनाथ समीप निहाल,निहार रही मुख राजदुलारी।
सदा सुखदायक नाथ दयालु,हरे विपदा शुभ मंगलकारी।
प्रभा मनमोहक श्री रघुवीर,सिया प्रभु रूप अनूप निहारी।
वाम सवैया के मंजरी, माधवी या मकरन्द अन्य नाम हैं। यह 24 वर्णों का छन्द है, जो सात जगणों और एक यगण के योग से बनता है।
121 121 121 121, 121 121 121 122
अनुराधा चौहान'सुधी' स्वरचित ✍
चित्र गूगल से साभार
वाह, बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार जिज्ञासा जी।
Deleteबहुत मनोहारी !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteअहा ! विलक्षण दृश्य प्रस्तुत किया है ।
ReplyDeleteहृदयतल से आभार आदरणीया।
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन
लाजवाब।
हृदयतल से आभार सखी।
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