Wednesday, June 30, 2021

अरविंद सवैया


 

*विहान* 
चढ़ता नभ सूरज भी हँसता,
किरणें बिखरी बनके रज शान।
 जनजीवन झूम रहा कहके,
रचना रचता नवगीत विहान।
कलियाँ चटकी पुरवा महकी,
भँवरे करते तब सुंदर गान।
वसुधा खिलती जब धूप खिली,
खलिहान चले यह देख किसान।

*दीनदयाल*
तुलसी दल से हरि पूजन हो,
मिलता सबको फल एक समान।
कदली फल भोग सभी रखते,
करते मनसे धन का सब दान।
विपदा धरती पर जो बढ़ती,
उससे मनमोहन क्यों अनजान।
बरसे जब दीनदयाल कृपा,
खुशियाँ भरते सब आँचल तान।
 
*-१-हरि*
मन से हरि का कर ध्यान सभी,
मिटते हर पाप सदा जड़ आज।
मनमोहक रूप अनूप छटा,
हरते जन पीर मिटा दुख काज।
प्रभु नाथ हरें दुख दीनन के,
मन से मिटता हर भार सदा,
हरि से छुप के रहते कब राज।
सबको करनी फल है भरना,
सच राह चलो बजते शुभ साज।

*-२-दीपक*
जब दीपक आस जले मन में,
चहुँओर खिले फिर भोर उजास।
महके पुरवा खिलती कलियाँ,
जब मंदिर द्वार खड़े सब पास।
मन माँग रहा प्रभु से सुख ही,
वरदान यही सब पूरण आस।
विपदा जग से फिर दूर हटे,
करदो सब पीर सदा अब नास।

*अनुराधा चौहान'सुधी'*
अरविन्द सवैया आठ सगण और लघु के योग से छन्द बनता है। 12, 13 वर्णों पर यति होती है और चारों चरणों में ललितान्त्यानुप्रास होता है।
112 112 112 112, 112 112 112 112 1


2 comments:

  1. छंद बद्ध रचना पढ़ कर आनंद आता है । सुंदर रचना

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    1. हृदयतल से आभार आदरणीया।

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