Monday, February 14, 2022

आई उजली भोर


 काली कोयल कूकती,अमराई की डाल।
खिलते हैं अब वाटिका, पुष्प गुलाबी लाल।

फूली सरसों खेत में,खुशियों की ले आस।
नव पल्लव तरुवर खिले, महक उठा मधुमास।

धूप गुनगुनी सी हुई, जाड़ा भी कमजोर।
छुपता कोने कोहरा, गर्माती अब भोर।

रंग-बिरंगे रंग से,वसुधा का शृंगार।
वन उपवन ऐसे लगें, बरस रहा हो प्यार।

सौरभ ले पुरवा बहे, थाम प्रीत की डोर।
आनंदित हर मन हुआ, आई उजली भोर।

©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित

11 comments:

  1. हार्दिक आभार आदरणीय।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया दी।

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  3. वाह बहुत ही खूबसूरत मन मुग्ध करने वाली रचना!

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    1. हार्दिक आभार मनीषा जी।

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    1. हार्दिक आभार मनोज जी।

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  5. आई उजली भोर... बहुत सुंदर सराहनीय दोहे ।

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    1. हार्दिक आभार जिज्ञासा जी।

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  6. प्रकृति प्रेम के उल्लास की सुंदर रचना
    वाह
    बधाई

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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