काली कोयल कूकती,अमराई की डाल।
खिलते हैं अब वाटिका, पुष्प गुलाबी लाल।
फूली सरसों खेत में,खुशियों की ले आस।
नव पल्लव तरुवर खिले, महक उठा मधुमास।
धूप गुनगुनी सी हुई, जाड़ा भी कमजोर।
छुपता कोने कोहरा, गर्माती अब भोर।
रंग-बिरंगे रंग से,वसुधा का शृंगार।
वन उपवन ऐसे लगें, बरस रहा हो प्यार।
सौरभ ले पुरवा बहे, थाम प्रीत की डोर।
आनंदित हर मन हुआ, आई उजली भोर।
©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
हार्दिक आभार आदरणीय।
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया दी।
Deleteवाह बहुत ही खूबसूरत मन मुग्ध करने वाली रचना!
ReplyDeleteहार्दिक आभार मनीषा जी।
Deleteलाजवाब सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार मनोज जी।
Deleteआई उजली भोर... बहुत सुंदर सराहनीय दोहे ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार जिज्ञासा जी।
Deleteप्रकृति प्रेम के उल्लास की सुंदर रचना
ReplyDeleteवाह
बधाई
हार्दिक आभार आदरणीय
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