Tuesday, February 8, 2022

महक बसंती

 

महक बसंती वन-वन घूमे।

डाल-डाल पर कलियाँ झूमे।

वन उपवन में यौवन छाया।

ऋतुओं का राजा मुस्काया।


कोयल मीठे राग सुनाती।

अमराई पर बैठ सिहाती।

पीली पीली सरसों फूली।

लिए बालियाँ झूला झूली।


नव पल्लव शाखों पर झूमे।

मधुकर गुनगुन गाते घूमे।

कली चटककर जब मुस्काई।

सौरभ ले बहती पुरवाई।


वसुधा का शृंगार निराला।

झूम रहा यौवन मतवाला।

महके महुआ झूमे डाली।

ऋतु आई देखो मतवाली।


बौर लिए फिर अमुवा महके।

देख खुशी से हर मन चहके।

ऋतुओं का राजा घर आया।

द्वार खड़ा फागुन बौराया।

©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित

चित्र गूगल से साभार






7 comments:

  1. रितुराज बसंत पर बहुत ही सुन्दर मनमोहक लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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  2. बसंत ने फागुन को भी बौरा दिया ।
    सुंदर रचना ।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया।

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  3. बसंती बयार जैसी खुबसूरत रचना फागुन के रंग में डूबो गई ।

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  4. वसुधा का शृंगार निराला।

    झूम रहा यौवन मतवाला।

    महके महुआ झूमे डाली।

    ऋतु आई देखो मतवाली।

    सुन्दर सृजन

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    1. हार्दिक आभार मनोज जी।

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