मन बंजारा ढूँढ़ता,
कहाँ हो तुम बताओ।
किन गलियों में जा छिपे,
जरा झलक दिखलाओ।
चाँदनी हौले उतरी,
खिड़की में आ बैठी।
लौ संग पतंगा जला,
बाती रही सिसकती।
बीते न यह दिन रातें,
अब तो तुम आ जाओ।
मन बंजारा ढूँढता,
कहाँ हो तुम बताओ।
मौसम भी बदले रंग,
यादें बैरी बनती।
चुप ही सही सखियाँ मेरे,
कानों में कह जाती।
ढूँढ़ता फिर दिल तुझको,
कोई तो बतलाओ।
मन बंजारा ढूँढ़ता,
कहाँ हो तुम बताओ।
बीते दिनों की यादें,
देकर गुजरती साल।
बीते साल में सबने ,
देखे सुख-दुख हजार।
फिर जाने खुशियाँ मिले,
आकर खुशी मनाओ।
मन बंजारा ढूँढ़ता,
कहाँ हो तुम बताओ।।
***अनुराधा चौहान***
आधार छंद*(१३/१२)
चित्र गूगल से साभार